हाल ही में BJP सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर की गई तीखी टिप्पणियों ने विपक्ष को हमलावर बना दिया है। AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इन बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को अदालतों को धमकाने वालों को रोकना चाहिए। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र पर सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने की कोशिश का आरोप लगाया है। इस बीच, BJP ने अपने सांसदों के बयानों से खुद को अलग करते हुए कहा है कि ये व्यक्तिगत राय है और पार्टी इनसे सहमत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जिससे मचा विवाद
यह पूरा विवाद सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के एक ऐतिहासिक फैसले से जुड़ा है, जिसमें अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधायिका द्वारा दोबारा पारित बिलों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय कर दी। यह फैसला तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर आया था, जिसमें राज्यपाल द्वारा बिलों को रोके जाने पर आपत्ति जताई गई थी।
अदालत ने कहा कि बिल की संवैधानिक वैधता तय करना अदालतों का अधिकार है, न कि कार्यपालिका का। अगर कोई बिल संवैधानिक प्रश्न उठाता है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट के पास भेजना चाहिए।
निशिकांत दुबे का बयान
ANI से बातचीत में BJP सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर हर फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा तो संसद को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि अदालत का रवैया ‘चेहरा दिखाओ, कानून बताओ’ जैसा हो गया है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 हटाए जाने को लेकर भी आपत्ति जताई और कहा कि सभी धर्मों में समलैंगिकता को अपराध माना गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खत्म कर दिया।
राम मंदिर, ज्ञानवापी जैसे मुद्दों पर कागज़ मांगने वाली अदालत पर उन्होंने आरोप लगाया कि वह देश में धार्मिक तनाव भड़का रही है। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों को कैसे निर्देश दे सकता है।
दिनेश शर्मा और उपराष्ट्रपति की टिप्पणी
BJP सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं और कोई उन्हें निर्देश नहीं दे सकता। वहीं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है जहां अदालतें कार्यपालिका और संसद का काम भी करने लगें।
उन्होंने अनुच्छेद 142 को लेकर कहा कि यह अदालतों के हाथ में एक “न्यूक्लियर मिसाइल” बन गया है जो लोकतांत्रिक संस्थाओं को चुनौती दे रहा है।
BJP का पलटवार
BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने साफ किया कि पार्टी इन बयानों से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा, “BJP न्यायपालिका का हमेशा सम्मान करती है और उसे लोकतंत्र का मजबूत स्तंभ मानती है।”
उन्होंने कहा कि दोनों सांसदों और अन्य नेताओं को इस तरह के बयान न देने की सख्त हिदायत दी गई है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
असदुद्दीन ओवैसी ने कटाक्ष करते हुए कहा, “तुम लोग ट्यूबलाइट हो, सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही कानून है।” उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 142 को डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान में रखा था और कोई उसे हटाने वाला नहीं है।
जयराम रमेश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसलिए निशाने पर है क्योंकि वह सरकार के कई फैसलों को असंवैधानिक ठहरा रहा है, जैसे कि इलेक्ट्रोरल बॉन्ड्स।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमाएं तय करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि संविधान की व्याख्या केवल अदालतों का अधिकार है। यह मामला न केवल अदालत और कार्यपालिका के बीच की सीमाओं पर बहस छेड़ता है, बल्कि यह दिखाता है कि लोकतंत्र में अलग-अलग स्तंभों के बीच संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।